नासदीय सूक्त --
शुरू में कुछ भी नहीं था .न दिन न रात न जमीन न आसमान .केवल एक शक्ति अपने आप में अनुप्राणित थी .और वही शक्ति अपना विस्तार कर रही है एक समय आने पर फिर से खुद में विलीन हो जाती है .ठीक वैसे ही जैसे इंसान जन्म लेता है ,मरता है ,फिर से जन्म लेता है .हमेशा विवाद रहा है इतनी विशाल दुनिया किसी के से कैसे बाहर आ सकती है .इसके लिए वेदांत दर्शन में विस्तार से तर्क दिया गया है .जैसे एक बीज से विशाल वृक्ष ,एक छोटे कद की महिला से लम्बे व्यक्ति का जन्म .हमारा हसना ,रोना,लड़ना ,झगड़ना ,जीना ,मरना सब कुछ एक ही अस्तित्व से निकले है .और अंत में वही विलीन हो जाते है .विज्ञानं अव्यक्त से व्यक्त बनाने की दहलीज पे है .इसमें कोई शक नहीं इंसान खुद इंसान बनाएगा . खुद का दिल खुद की सोच बनाएगा .फिर भी वो उपनिषद को पार नहीं पायेगा।
श्रृष्टि में बहुत से विद्वान हुए बहुत सी किताबें लिखी गयी .हर किसी ने श्रृष्टि और सभ्यता के शुरुआत को अपने हिसाब से बताया .हर कोई विज्ञानं के आगे नतमस्तक हो गया .दुनिया में उपनिषद ही एक ऐसी किताब है जिसके आगे खुद विज्ञानं सर झुकाता है .उपनिषद के नासदीय सूक्त के अनुसार ..
शुरू में कुछ भी नहीं था .न दिन न रात न जमीन न आसमान .केवल एक शक्ति अपने आप में अनुप्राणित थी .और वही शक्ति अपना विस्तार कर रही है एक समय आने पर फिर से खुद में विलीन हो जाती है .ठीक वैसे ही जैसे इंसान जन्म लेता है ,मरता है ,फिर से जन्म लेता है .हमेशा विवाद रहा है इतनी विशाल दुनिया किसी के से कैसे बाहर आ सकती है .इसके लिए वेदांत दर्शन में विस्तार से तर्क दिया गया है .जैसे एक बीज से विशाल वृक्ष ,एक छोटे कद की महिला से लम्बे व्यक्ति का जन्म .हमारा हसना ,रोना,लड़ना ,झगड़ना ,जीना ,मरना सब कुछ एक ही अस्तित्व से निकले है .और अंत में वही विलीन हो जाते है .विज्ञानं अव्यक्त से व्यक्त बनाने की दहलीज पे है .इसमें कोई शक नहीं इंसान खुद इंसान बनाएगा . खुद का दिल खुद की सोच बनाएगा .फिर भी वो उपनिषद को पार नहीं पायेगा।
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