जिंदगी की सबसे बड़ी खामी ही ,
मेरी खासियत बनकर उभरी है ।
तुझे पाने की अनकही सी जिद ,
आज मेरी पहचान बनकर खड़ी है ।
इंसानी सोच का हिस्सा रहा है ,कुछ अनकहा सा अनजाना सा एक ख्वाब .जो वक्त के फासले तय करके एक दिन आपकी पहचान बन जाती है । और आपको पता तक नहीं चलता .और अंत में रह जाता है ,एक अजीब सा आनंद जो साथ दुन्ड़ता है .अपने ही जैसे एक समूह का .दिल में अजीब सा उन्माद उठता है ,और कहता है ॥मेरी खासियत बनकर उभरी है ।
तुझे पाने की अनकही सी जिद ,
आज मेरी पहचान बनकर खड़ी है ।
वक्त से पहले और तक़दीर से ज्यादा ,
कुछ भी नहीं है इस इंसानी अस्तित्व में ।
इससे परे कुछ रह जाता है तो बस ,
चन्द अनकहे से ख्वाब और ढेर सारी,
जागी सोई सी हसरतें .
कुछ भी नहीं है इस इंसानी अस्तित्व में ।
इससे परे कुछ रह जाता है तो बस ,
चन्द अनकहे से ख्वाब और ढेर सारी,
जागी सोई सी हसरतें .
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