Tuesday, July 2, 2013

वह सोच ही है ...

इंसान की सोच ही इंसान को कामयाब भी बनाती है और नाकाम भी करती है .
वह सोच ही है जो आपको खुश भी करती है और दुःख भी देती है .
वह सोच ही है जो दुसरे दिलों से जोड़ती भी है और तोड़ती भी है .
प्रेमियों के लिए सोच एक गिलास पानी जितना है .
जिसका उन्हें हर पल लुडक जाने का भय है .
एक प्रेमी के लिए उसकी पूरी जिंदगी का निचोड़ बस उसका एक गिलास पानी है .
जिसे न तो खुद पिएगा न ही दूसरों को इसकी इजाजत देगा .
सवाल उस पानी का भी नहीं है सवाल उसकी पूरी जिंदगी का भी नहीं .
सवाल उस गिलास का है जिसमे वो पानी रखा है . 
सवाल उस गिलास के साइज का है जो की आपकी सोच है .
अगर उस गिलास की जगह एक बाल्टी होता या बाल्टी की जगह एक टैंक होता ,
या टैंक की जगह एक तालाब या पूरा समंदर होता जो आपकी सोच है .
तो क्या आप उस पानी के लिए लड़ते ;
उस पानी को क्या जिंदगी से ज्यादा अहमियत देते ;
नहीं ,आप बाँटते बगैर किसी नफ़रत के बगैर किसी स्वार्थ के ,बगैर किसी ख्वाहिश के .

        क्योंकि आपकी सोच का दायरा विशाल है .आपको उस एक समंदर के अन्दर
 करोड़ों गिलासें दिखेंगी ,फिर भी पानी का स्तर घटता हुआ नहीं दिखेगा .

       वो पानी जिंदगी की चाही गयी खुशियाँ है .उस पानी की सीमित मात्रा ही 
आपकी खुशनसीबी या बदनसीबी है .और वो गिलास आपकी सोच का दायरा .
आप अपनी सोच को समंदर की तरह विशाल बनाइये .आपकी जिंदगी में 
अफ़सोस नाम की कोई चीज नहीं होगी .

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