श्रृष्टि रचना के गूढ़ रहस्यों को समझ कर आत्मा -परमात्मा को आत्मसात कर लेना ही अध्यात्म है .हम तब तक किसी को आध्यात्मिक नहीं कह सकते जब तक कोई खुद को इश्वर का ही एक अंश महसूस न कर ले .केवल एक शक्ति जो स्वयं में ही स्वयं अनुप्राड़ित है ,वही से ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ और उसी में एक दिन दिन विलीन हो जाना है ,इस चक्र को समझ लेना ही अध्यात्म है .पर इस चक्र को परिभाषित करना ठीक वैसा ही है जैसा किसी बुधजीवी चींटी द्वारा मानवीय जीवन को परिभाषित करना .विज्ञान और अध्यात्म में मूलतः कोई अंतर नहीं है .केवल समझाने के तौर -तरीके अलग हैं .कोई भी नयी चीज पहले हम खुद समझते है तब जाकर ओरों को समझाते हैं .अतः अध्यात्म मतलब खुद जानना विज्ञान मतलब दूसरों को बताना .अध्यात्म का श्रोत चेतना (सुपर कास्मिक पॉवर ) है जबकि विज्ञान का श्रोत रश्मि (फोटान इनर्जी )है .अध्यात्म अदृश्य है खुद तो समझा जा सकता है ,पर समझाया नहीं जा सकता .विज्ञान दृश्य है उसे बेहतर समझाया जा सकता है .पर अस्तित्व दोनों का है ,दोनों ही सार्थक हैं .जैसे उर्जा का स्थानान्तरण दोनों से होता है हर्टज़ से तेराहर्त्ज़ से भी .
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