Thursday, July 2, 2009

सफर (अतीत से अब तक )

हम अपने ही लोगों की नजर में एक मुर्ख बनकर रह गए ।
आध्यात्मिक इंसान को कभी चंचल नहीं होना चाहिय ।
अपनों की बेपनाह चाहत नें चंचल बना दिया ।
और इस चंचलता ने मुझे पुरी तरह कमजोर कर दिया ।
मैं परेशान रहा ,
क्यंकि मैंने लोंगो के भविष्य की परवाह की ।
लोंगो ने मुझे मुर्ख पाया ,
क्योंकि उन्होंने केवल अपना वर्तमान देखा ।
उन लोंगो ने वास्तविकता नहीं देखी ,
केवल औरों की बातें सूनी ,उसी को आधार मानकर
अपना निर्णय लिया ।
आज मैं अपना नजरिया बदलने जा रहा हूँ ।
क्योंकि समय ख़ुद को दुहराता है ।
दुनिया में अपनी रूचि और लगाव के अनुसार
अपने अन्दर की अच्छाइयां और बुराइयां बदलती रहती है ।
दुनिया में बहुत सी रहस्यमय बातें होती हैं ।
जो सच से हमेशा दूरी बनाए रखती हैं ।
बदती उम्र के साथ उसका केवल एहसास हो जाता है ।
आज लोगों की वजह से जो परेशानियां मेरे सामने आयीं ।
जिसे लोग यूँ ही छोड़कर भागते जा रहे है और मैं भी ।
कल यही परेशानियां एक बार फ़िर मेरे सामने आएँगी ।
उस बार लोग मेरी बातों को स्वीकार करेंगे ।
फ़िर भी उनसे अपनी तकलीफें कहने का मुझे मौका नहीं मिलेगा ।
क्योंकि हर बार की तरह मैं उन्हें माफ़ कर चुका होऊंगा ।
बस मेरे को एक बात सोचने को रह जायेगी ।
वर्षों पहले मैंने भविष्य बतलाकर चोट खाई ।
और आज वर्तमान देखकर चोट खायी ।
उसकी रूह तो मेरी गुलाम होकर रह जायेगी ।
लेकिन मेरे हिस्से में लगी ये चोट एक विरासत बनकर ,
मुझे परेशानियों में छिपी वो दिव्य आनंदमय ,
पर कष्टों में जकड़ी हुयी भविष्य की किसी परेशानी का
एहसास कराती रहेगी ।

Tuesday, June 30, 2009

तब रिश्ते बिगडे ---

तब रिश्ते बिगडे ,
जब मैंने कहा हाँ ,उसने कहा ना ।
जब मैंने कहा ना उसने कहा हाँ ।
जब दोनों इसी पर खामोश हुए ।
तब रिश्ते बिगड़े,
जब मैंने दिखाई खुशी ,उसने दिखाई मायूसी ।
जब मैंने दिखाई मायूसी ,उसने दिखाई खुशी ।
जब दोनों इसी पर खामोश हुए ।
तब रिश्ते बिगड़े ,
जब किसी को मैंने कहा ऐसा ,उसने कहा वैसा ।
जब किसी को मैंने कहा वैसा ,उसने सोचा ऐसा ।
जब दोनों इसी पर खामोश हुए ।
तब रिश्ते बिगड़े ,
जब कोई गुप्त बात बताने को ,
मैंने सोचा बाद में ,उसे मिला पहले ।
जब उसने सोचा बाद में ,मुझे मिला पहले
जब दोनों इसी पर खामोश हुए ।

तब रिश्ते बने ----

तब रिश्ते बने ,
जब खास समय दिया किसी खास को ।
तब रिश्तों ने उडान भरे ,
जब सिलसिले शरू हुए मिलने के ।
तब रिश्ते प्रगाड़ बने ,
जब भावनाओं का मिलन हुआ ।
एक उम्मीद जगी वफादारी की ।
तब रिश्तों में विश्वास जगे ,
जब हर सोच पूर्व अनुमानित हुए ।
तब रिश्तों नें खुशी देखे ,
जब कोई गुप्त बात दूसरो से पहले मिले ।
तब तक रिश्तों नें बहार देखे ,
जब तक ये सिलसिले चलते गए ।

Monday, June 29, 2009

महात्मा मेरी नजर में --


मैं महात्मा उसी को मानता हूँ । जिसका ह्रदय
गरीबों के लिए रोता है । जिसके नश्वर शरीर में
कुछ कर गुजरने की क्षमता भले न हो ,
लेकिन उसकी विचारशक्ति इतनी शक्तिशाली हो ,
की अंगुलिमाल जैसे डाकू को भी मानवता का एहसास करा दे ने वाली बुध्ध जैसी चमक हो ।
मैं महात्मा उसे मानता हूँ ,जिसके पास गरीबों की मदद के लिए भले ही कुछ न हो ,लेकिन उसके पास इतनी चलायमान शक्ति हो जिससे वह दूसरों को कम से कम इसका एहसास करा सके ।
महात्मा वही है जिसके अन्दर मानव जाती के अन्दर से समस्त निर्विकारों को मिटाकर
कम से कम एक सच्चा इंसान बना देने की क्षमता हो ।
महात्मा वो है ,जनमानस के बीच जिसकी मौजूदगी आध्यात्मिकता का एहसास करा दे ।
मेरी नजर का महात्मा वो है ,जिसके प्रस्थान के बाद भी उसके अनमोल वचन उन
वादियों में गूंजती रहें .ताकि जब भी कोई शान्ति की तलाश में अपनी आँखें बंद करें ,
वो गूंज हमेशा के लिए उसे अपने आगोश में ले सके ।

Friday, June 26, 2009

शक्ति और भक्ति

जब किसी की पहचान किसी एक व्यक्ति तक सिमित रहती है ,
तब तक उसे भक्ति कहते हैं ।
जो एक अद्भुत आनंद को जन्म देता है ।
और जब उसकी पहचान समाज में बनने लगती है ,
तब वह भक्ति न रहकर शक्ति बन जाती है ।
भक्ति तो सदैव एक ही दायरे में रह जाती है ।
लेकिन शक्ति दो दायरों में बाँट जाती है ।
एक स्थिर शक्ति जो ज़िन्दगी खुशहाल बनाती है ।
एक चलायमान शक्ति जो केवल विनाश लाती है ।

कुछ अपने उसूल

  1. ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर जब ,तकलीफें तुम्हें परेशान करने लगें ।तो उन तकलीफों को इस हद तक अपना लो ,की तकलीफें देने वाला इश्वर भी रो पड़े ।
  2. ज़िन्दगी की बहार जब तुमसे अपना दामन छुड़ाने लगे ,तो इससे पहले की दुनिया तुझे ठुकराए ,तू दुनिया को ठोकर मार दे ।
  3. अगर किसी के दिल से निकली एक इच्छा के पीछे मेरी हज़ार कोशिशें हैं । तो ये भी सम्भव है ,उसके दिल से निकली एक नफ़रत के पीछे मेरी हजार अड़चनें होंगी ।
  4. कोई बात है जो ,जो छलक आई है ,अक्षरों के घडे औंधे कर दो ,और अपनी खामोशी को ,आसमान पीने दो ।

बदलाव रिश्तों के

एक आदमी के जीवन के सभी रिश्ते -नाते जो
जो दुनिया से बने हों उनमे केवल अपनी उपलब्धि
को सर्वोपरि रखना चाहिए ।
केवल अपना परिवार ऐसा विश्वास होता है ,
जो सुख -दुह्ख दोनों में काम आता है ।
बाकी सभी रिश्ते केवल आपके उपलब्धि से जुड़े
होते हैं ,आपसे नहीं ।
जैसे-जैसे आपकी उपलब्धि ऊपर-नीचे आते -जाते रहेंगे
आपके सम्बन्ध औरों से नजदीकियों और दूरियों
में बदलते जायेंगे ।
अतः मेरे अनुसार ----
दुनिया में बने ऐसे रिश्तों को कायम रखने के लिए
आप उस इंसान की परवाह मत करियेगा जिनसे आप
जुड़े हैं । बल्कि उस उपलब्धि ,उस महानता की
परवाह करियेगा जिससे लोगों के बात और
जज्बात जुड़े हैं ।

पहचान आदमी की

हर एक की पहचान केवल उसके वर्तमान से होती है ।
परेशानियों में ना अतीत साथ दे पाता है ,
न ही भविष्य ।
अतीत की मज़बूरी ये ,की वो तो बीत चुका ,
भविष्य की विवशता ये ,की इसमें अभी संदेह है ।
अतः हमें केवल वर्तमान में जीना चाहिए ,
और इसी के प्रति वफादार होना चाहिए ।

हलचल मन के इच्छाओं की ...

जिस तरह समंदर में उठने वाली लहरों की कोई
सीमा -सरहद नहीं होती ,वैसे ही इंसान के दिमाग
में उठने वाली इच्छाओं की कोई पहचान नहीं होती ।
जब इंसान बहुत खुश होता है तो उसे दुनिया में ,
दिखने वाली नाकामयाबियाँ परेशान करती हैं ।
जब इंसान परेशानियों में जीता है तो उसे ,
औरों की खुशियाँ परेशान करती हैं ।
अतः हमने अपने जीवन में जो कुछ देखा बस यही पाया ----
जब कोई जीवन के सकारात्मक पहलुओं को
स्वीकार करता है तो उसे
चारों दिशाओं में केवल ना दीखता है ।
जब वह ना में जीता है ,
तो मन हाँ तलाशता है ।
अतः -----
ज़िन्दगी की इस तलाश में इच्छाओं का अमृत --
अगर मिल गई तो मंजिल ,
ना मिला तो रास्ता ।

परिभाषा प्यार की ---

प्यार एक माध्यम है ,ज़िन्दगी में हर तरह के सीख से रिश्ता
जोड़ने का । प्यार वह समंदर है जिसमें जिंदगी के सारे अनुभव
एक साथ मिलते है । प्यार ,खुशी ,मायूशी ,एहसास ,उत्साह ,बेताबी ,
अफ़सोस ,क्रंदन से लेकर मानवीय जीवन के हर भावः -भंगिमाओं
का एक अदभुत सा संगम है । अतः ----------
"हे इश्वर वैसी आँखों को उस नमी से बचाना ,
जो उसका बोझ न उठा सकें । "
सच्चे प्यार की आधुनिक परिभाषा -------
मेरी नजर में जब इन्सान ख़ुद से ज्यादा किसी और की
परवाह करने लगता है ,तो उसे प्यार कहते हैं ।
जब उसकी कामयाबी में अपनी खुशी दिखने लगे ,
तो इसे प्यार की शुरुआत कहते हैं ।
और उन खुशियों को कायम रखने के लिए ,
जब वह स्वयं को पुरी तरह समर्पित कर दे ,
तो उसे प्यार की हद कहते हैं ।
जब उस प्यार को समाज स्वीकार करने लगे ,
तो उसे इश्वर का आशीर्वाद कहते हैं ।

Thursday, June 25, 2009

जब कोई मिला

ज़िन्दगी उम्मीद के फूलों से भरा एक सुंदर सा गुलदस्ता है । जिसकी खूबसूरती
को बनाए रखने के लिए द्रिड़ता जैसी देखभाल की जरुरत पड़ती है ।
लेकिन कभी ऐसे हालात आ जाते है जब इसकी जिम्मेदारी में किसी और को भी
शामिल करना पड़ जाता है ,और हमारी सुद्रिड़ता दो भागों में बँट जाती है ।
ऐसा ही कुछ जब हमारे साथ हुआ ,तो ह्रदय ने उछल कर बड़े ताव से कहा ------

"वो कौन सी शक्ति है ,
जिसने मेरे कर्म में टांग अडाई है ।
दुष्टात्मा नहीं परमात्मा होगी वो ,
जिसने इस दिल में हलचल जगाई है । "

Wednesday, June 24, 2009

आदर्श

अक्सर लोग पूछते हैं आपके आदर्श कौन हैं ।
आप किसके जैसा बनना चाहते हैं।
मेरी नजर में आदर्श की परिभाषा -------
आदर्श दिमाग की एक सोच है ,
जो किसी परिचित महापुरुष की सोच से जा मिलती है ।
आदर्श एक माध्यम है अपने ही जैसे दुसरे सोच वाले से जा मिलाने का ।
जब हम कोई बात सोचते है , जब हमारी सोच किसी से पूरी तरह से जा मिलती है ,
जब हमारी रचना का सार किसी महापुरुष का सार बनकर रह जाता है ,
जब हमारे ख्वाब किसी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी से जा मिलते है ,
जब हमारे कल्पना के पर किसी की भविष्यवाणी बन कर रह जाते है,
इससे जो रिश्ता जन्म लेता है उसी को आदर्श कहते है ।
अतः -----------------

आदर्श एक रिश्ता है ,सोच के सोच से मिलन का।
आदर्श एक संगम है ,भविष्य का अतीत से मिलन का ।
आदर्श एक दर्पण है ,ख्वाब से हकीकत के मिलन का ।
आदर्श एक आस्था है ,ह्रदय से ह्रदय के मिलन का ।
आदर्श एक रास्ता भी सोच का अनुभव से मिलन का ।
आदर्श एक प्रतिज्ञा भी ,मृत्यु के जीवन से मिलन का ।
आदर्श एक कहानी भी ,नवजात शिशु के अन्दर ,
शून्यता से नयी सीख के मिलन का ।

Sunday, June 21, 2009



शिव आज भी ॐ है ,

मैं आज भी मैं हूँ ,

प्रश्न उठते रहे हैं , आज भी उठते है ,

मैं कल भी खामोश मुस्कराता था , आज भी मुस्कराता हूँ ,

समय ने कल भी कोशिश की आज भी कोशिश में है ,

इसे मारा जाय , इसे हराया जाय , रास्ते में ही गिराया जाय ,

मैं कल से लेकर आज तक इसी समय से ही जीतता आया हूँ ।

कलाम

कलाम जी के अग्नि की उडान से ली गई कुछ बातें =-------
धरती का हर एक प्राणी भ्रम में जीता है ,
यह भ्रम इच्छाओं और क्रोध की पैदाइश होती है,
जो आदमी अपनी अच्छाइयों द्वारा इसे जीत लेता है,
जो ज़िन्दगी के सारे भ्रम से दूर हो जाता है ,
वही सफल है , वही जीवन में पूज्यनीय है ।


दूसरो के ग़मों को नजदीक से समझने के लिए अग्नि की उडान में एक लाइन इस तरह से है,
तुम सारा दिन प्रयास करके एक योजना बनाओ ;
तुम्हारी इच्छा हो हमेशा इसे एक सा बनाए रखने की ,
लेकिन बीच में तुम्हारी योजना बुरी तरह नष्ट कर दी जाय ,
या नष्ट करने के लिए मजबूर किया जाय ,
तुम्हे मारा - डांटा जाय तो तुम्हे कैसा लगेगा ।


वह लाइन जिसका अर्थ बहुत देर में समझ आया ----------------
सर्वनाश और निर्माद के बीच ,
भावनाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच ,
केवल परछाइयों का पीछा करो ।


एक बहुत ही सुंदर लाइन ----------------
सुंदर हाथ वही है ,
मजबूत हाथ वही है ,
सच्चा हाथ वही है ,
जो एक ऐसी रचना दे सके ,
जो ज़िन्दगी के बहुत करीब हो ,
जो हर पल विश्वशनीय हो ,
जो हर पल सहायक हो,
जो बहुत दूर तक साथ हो ।

एक यह लाइन ----------------
घबराओ नहीं , दरो नहीं , भटको नहीं ,
अवसर बार -बार आयेंगे ,
जब तक कोई महान कार्य शुरू नहीं होगा ,
जब तक वह कार्य पूरा नहीं होगा ।

तीसरे अध्याय की लाइन --------------
विनाश , इच्छा , पराजय इन सभी को ,
क्यों; की अँधेरी रात में तब तक भीगने दो ,
जब तक ,
कमजोरी साहस न बन जाए ,
अँधेरा उजाला न हो जाए ,
गलती सीख न बन जाए ।

प्रकृति

प्रायः यही माना जाता है मानवीय जीवन के श्रीष्टिकर्ता का नाम ही प्रकृति है , लेकिन मेरी नजर में प्रकृति एक स्थायित्व का नाम है । जिससे परे कोई सोच नही ।
जैसे -----------------------
कवि जब अपनी कल्पना से थक जाता है ,
उसकी खामोशी का नाम प्रकृति है ।
वैज्ञानिक जब विज्ञानं में थक जाता है ,
उसकी उलझन का नाम प्रकृति है ।
डाक्टर जब इलाज से हार जाता है ,
उसके विनम्र अफ़सोस का नाम प्रकृति है ।
इन्सान का दिमाग जब काम करना बंद कर देता है ,
उसकी खामोश संतुष्टि का नाम ही प्रकृति है ।
ब्रम्हांड में जब सभी अविष्कार एक साथ मिलते हैं ,
उससे जन्म लेने वाली विनाश ही प्रकृति है ।
समस्त मानव जाती जब संकट में खामोश हो जाती है ,
तब आने वाले अंजाम का नाम ही प्रकृति है ।

सीख

अक्सर हम ज़िन्दगी में करना कुछ और चाहते है , लेकिन होता कुछ और ही है
ज़िन्दगी की सारी उम्मीदें टूटकर बिखर जाती है , मन के अन्दर एक विक्षोभ
सा आ जाता है। अगर प्रकृति मेरी गुलाम होती तो मैं सारी दुनिया तबाह कर देता है ,।
लेकिन कुछ समय के पश्चात ज़िन्दगी में ऐसे बदलाव आ जाते है, जो ये सोचने को मजबूर कर देते है की जो कुछ भी हुआ अच्छा ही हुआ ।
तो इससे हमने एक ही निष्कर्ष पाया ------
प्रकृति हर कदम पर इन्सान का भरपूर साथ देती है ,
वह हमें कुछ सीख देना चाहती है ,
लेकिन हम प्रकृति के उन संकेतों को समझ नहीं पाते ,
और अनायास उस पर क्रोध कर बैठते हैं,
अगले ही pal ये महसूस होता है ,
प्रकृति तो मेरे साथ ही थी ,
उसने मेरे साथ जो कुछ भी किया अच्छा किया,
औए मैं नादान उसे समझ नहीं पाया ।
अतः जहाँ तक मैं मानता हूँ -----------------
ज़िन्दगी के हर उस मोड़ पे ,
जब घटनाएं अपने सोच के विपरीत होने लगें ,
तो हमें बजाय क्रोध के ये सोचना चाहिए ,
आख़िर प्रकृति हमें क्या सीख देना चाहती है ,
ज़िन्दगी के किस गलियारे में ले जाना चाहती है ।

Saturday, June 20, 2009

यदि

रुडयार्ड किपलिंग की एक रचना मुझे बचपन से प्रभावित करती रही जिसमें कहा गया है
तुम महान हो ,तुम महान हो , तुम महान हो ,
जब तुम्हारा सब कुछ खो गया हो ,
जब तुम पर हजार दोष लगे हो ,
इसके बावजूद तुम ख़ुद को सबके सामने रख सको ।
तुम महान हो , तुम महान हो , तुम महान हो --
जब दुनिया तुम पर शक करे ,
तुम पर हजार आरोप साबित कर दे ,
और तुम अपने आप पर विश्वास रख सको ।
तुम महान हो -----
जब तुमसे लोग नफरत कर रहें हो तुम्हे गाली दे रहे हो ,
और तुम इंतजार कर सको , इन्तजार से कभी थक न सको ,
लोग तुम्हे बुध्धिमान कहे या मुर्ख ,
तुम घबरा न सको ।
तुम महान हो ----
यदि तुम्हारे अन्दर सपने तो आयें ;
लेकिन तुम उसके दास न बन सको ,
तुम्हारे अन्दर बुरे ख्याल तो आयें ;
लेकिन वे सभी इरादे न बन सकें ,
यदि तुम सुख दुःख दोनों में साम्य रह सको ,
tum mahaan ho ------
यदि औरों की तीखी बातें सुन सको ,
बरबाद होकर भी बर्बादी को संपन्नता में बदल सको ,
हार कर भी जीत सको ,
रूककर आँधियों का सामना कर सको ;
कभी अपनी नुक्सान पर अफ़सोस न कर सको ;
हजार अड़चनों के बाद भी लोगों की मदद कर सको ;
तुम महान हो --------
यदि राजा होने के बाद भी गरीब का साथ न छोड़ सको ;
लाखों की भीड़ में अपनी विशेषता जमाये रख सको ;
अपने जिंदगी की मनहूस दिन chand लम्हों में भुला सको ;
हजार दोस्तों द्वारा लूटकर भी स्थिर रह सको '
ज़िन्दगी को हमेशा हर पल एक सा बनाए रख सको '
अगर ऐसा कर सको तभी तुम महान हो ,
ये धरती तुम्हारी है , इसकी हर एक चीज तुम्हारी है ,
इस dharati के लोग तुम्हारे है ।

स्वामी विवेकानंद

स्वामी जी की वह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी जिसमे कहा गया ------
सर्प अपने फन तभी फैलाता है , जब उसे चोट लगती है ।
अग्नि तभी धधक कर जलती है जब वह बुझने को होती है ।
शेर की गर्जना तभी लोगो को कम्पित करती है ,
जब वह खुले रेगिस्तान में दहाड़ता है ।
बादलों से बरसात तभी होती है,
जब बादलों के ह्रदय में बिजली तड़पती है ।
वैसे ही एक इन्सान की उत्तमता तभी सामने आती है,
जब वह अपने अंतरात्मा से काम लेता है ।
अतः ------
चाहे आँखें धुधली हो जाय ,चाहे कान बहरे हो जाय ।
चाहे दोस्ती टूट जाए ,चाहे प्यार तबाह हो जाए ।
चाहे भाग्य तुम्हे हजार ग़मों के कुएं में धकेल दे ,
चाहे प्रकृति तुमसे नाराज हो जाए ,
और तुम्हे तहस नहस कर दे ,
यदि तुम स्वयं को जानते हो ,
तो तुम ईश्वरीय हो ,तुम्हे कोई नहीं हरा सकता ।
क्या मुमकिन क्या नामुमकिन बगैर किसी परवाह के ,
आगे बड़े चलो , बड़े चलो , बड़े चलो
और जीत कर दिखा दो पुरी दुनिया को ,
इस भारतीय आत्मा की महान शक्ति को ।

शक्ति

शक्ति जिसकी जरुरत श्रिस्टीके प्रारंभ से ही महसूस की गयी । लेकिन समय अपना अस्तित्व बदलता गया ,साथ ही साथ शक्ति की परिभाषा भी बदलती गई -----
ज़िन्दगी की शुरुआत में शक्ति का अर्थ शारीरिक क्षमता हुआ करती थी .उसके बाद शक्ति की परिभाषा उसकी उपलब्धि से जोड़ी गयी , की वह कितनी दूर तक अपना प्रभाव बनाये रख सकता है.इसी क्रम में समय लगातार अपना रुख बदलता गया और आज का दौर आया ------
आज की दुनिया में शक्ति की परिभाषा उसके कामयाबी और चतुर दिमाग से तुली जाती है जैसे ------

कितनी आसानी से किसी को बेवकूफ बनाया जा सके
कितनी आसानी से अपना काम बनाया जा सके
कितनी आसानी से किसी को बर्बाद किया जा सके
कितनी आसानी से किसी का प्यार पाया जा सके
कितनी आसानी से कोई रिश्ता तोडा जा सके
कितनी आसानी से किसी को लड़ाया जा सके
और कितनी आसानी से ख़ुद को बचाया जा सके
शक्ति की ये परिभाषाएं आज के दौर में इन्सान को कामयाब तो बना देती हैं लेकिन वो खुशी नही दे पाती जिसकी उसे तलाश है .सच्ची खुशी तो तभी मिलती है जब वह दूसरो पर ख़ुद को लुटाकर त्याग की शक्ति हासिल करता है ।
अतः मेरी नजर में त्याग ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है । इस शक्ति के भी कई दायरे है जिसकी चर्चा आगे करेंगे ।

डर

डर सुनने में बड़ा अजीब शब्द है , लेकिन सच्चाई ये है की यही वह आधार जिसने इस धरती को स्वर्ग बनाया.डर बहुत विस्तृत शब्द है ,फिर भी इसकी कुछ झलक इस तरह है ---
इश्वर,इन्सान और श्रिस्टी के सन्दर्भ में -----
व्यक्ति वही है जिसके अन्दर डर है.डर ही जीवन का आधार है । अपना डर दूर कराने के लिए ही व्यक्ति कर्म करता है.डर की ये बात शारीरिक नहीं बल्कि कुछ और ही है ।
डर जैसे इश्वर के बताये रास्तों से भटक जाने का ,डर जैसे ख़ुद के उसूलों से मुकर जाने का,
इस ब्रह्माण्ड में अनेकों ऐसे डर है ,जो मनुष्य को निष्काम भावः से कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे खुशी की भावना को ही लीजिये -
दोस्ती भरे मीठे अहसासों के टूट जाने का डर ।
किसी के प्यार में नजरों से गिर जाने का डर ।
किसी कामयाबी में नाकाम हो जाने का डर ।
किसी भी समय ज़िन्दगी से दूर हो जाने का डर ।
किसी बात को लेकर रिश्ते टूट जाने का डर ।
व्यस्त जीवन में किसी के नाराज हो जाने का डर ।

वास्तविकता

अक्सर दुआओं में हाथ उठते है , हे इश्वर इस धरती पे सर्वत्र सुख शान्ति रहे । पापियों का नाश हो ,सबकी ज़िन्दगी खुशहाल रहे ,कहीं कोई अशांति न हो ,लोग एक दुसरे की मदद करते है .फिर वही लोग एक दुसरे के जानी दुश्मन बन जाते है ऐसा क्यों -------

विचार शुरू करते है इश्वर से और इश्वर की बनायी सबसे महान कृति इन्सान से -----

इश्वर की इच्छा छोडिये , अगर इन्सान एक दुसरे को अच्छा बनाना चाहे तो कोई मुश्किल काम नहीं है .परन्तु प्रश्न ये उठता है की ,धरती से अगर बुराइयां समाप्त हो जाय तो शायद अच्छाई की परिभाषा किसी को मालूम ही नहीं होगी.अतः ,इन्सान एक दुसरे को सुधारता है तो इश्वर का अस्तित्व मिट जाएगा.यदि स्वयं इश्वर सुधारक बनता है ,तो उसके स्वयं के बनाए नियम नष्ट हो जायेंगे। जब की दोनों का अस्तित्व बने रहना ही प्रकृति का नियम है .अतः ---

मेरी नजर में उचित अनुचित सम्बन्ध में ये सांसारिक कलह सदैव जारी रहेंगे .

ख्वाब

ख्वाब जिसका गुलाम है पृथ्वी का हर एक जीवधारी ,ख्वाब जिसके बगैरअधूरी है ज़िन्दगी की हर कामयाबी ,ख्वाब जिसने सजाया इस धरती को तब से लेकर आज तक ,ख्वाब जिसने पैदा की इंसान के अन्दर तरह -तरह के अद्भुत विचार ===

अतः ;

ख्वाब वह अद्भुत शक्ति है ,जिससे शुरू होता है एक बच्चे का जीवन ,ख्वाब ही वह तमन्ना है जिसपे समाप्त होता है एक बुजुर्ग का जीवन ।

शायद अगले पल में पिछले पल की तस्वीर है ख्वाब,

शायद जंग के मैदान में राहत की एक आवाज है ख्वाब।

शायद पिछली जिंदगी के लिए अगले जीवन का पैगाम है ख्वाब.

आप बीती

महत्त्व आप बीती का ---------

हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी आप-बीती की इच्छा रखता है .जैसा की आज की दुनिया में इसे कैद करना बहुत आसान हो गया है .पिछली ज़िन्दगी की ऐसी कुछ ख़ास यादें जो जीवन भर के लिए एक प्रेरणा बन जाती है ।------

अतः

जो इन्सान अपनी आपबीती को किसी भी माध्यम से कैद कर लेता है वह तो अपने भविष्य में लीन हो जाता है ,जिनके पास क्षमता होती है .लेकिन जो अपनी आप बीती कैद नहीं कर पाते वे अपने अतीत में ही डूबकर रह जाते है .और वे लोग जो ऐसा कुछ नहीं कर पाते या जिनका कोई अतीत ही नहीं शायद यही वे लोग है जो सपनों की दुनिया में खोकर रह जाते है.इस तरह इन्सान तीन तरह के हुए ===

पहले वे जो उत्साह के साथ जिंदगी में आगे बदते चले गए ,दुसरे वे जो ज़िन्दगी की उतार-चदाव के बीच उलझ कर रह गए ,तीसरे वे जो केवल सपनों की दुनिया में खोकर रह गए। और ये सब कुछ इंसान की पिछली ज़िन्दगी की आप बीती के कारण होता है .

Friday, June 19, 2009

मेरा परिचय

आज बड़ी हसरतो के साथ मैंने ब्लोग्स की दुनिया में कदम रखा है ।--------------

मेरी पहली धारडा--------------

जिंदगी हैरत अंगेज तमन्नाओं से भरी एक ऐसी मायाजाल है ,जिसमे कौन किसरास्ते से होकर कहाँ पहुँच जाय सिवाय समय के कोई नहीं जानता .और अंत में रह जाती है दुखों की एक विशाल सी बस्ती जो अतीत की गलतियों पर पश्चाताप के आंसू बहाती है।

हमें इसी मायाजाल को सुलझाना है ,एक निष्कर्ष निकालना है ,फिर इसे दुनिया के सामने रखकर खुशी -खुशी इस दुनिया से विदा हो जाना है.