अक्सर दुआओं में हाथ उठते है , हे इश्वर इस धरती पे सर्वत्र सुख शान्ति रहे । पापियों का नाश हो ,सबकी ज़िन्दगी खुशहाल रहे ,कहीं कोई अशांति न हो ,लोग एक दुसरे की मदद करते है .फिर वही लोग एक दुसरे के जानी दुश्मन बन जाते है ऐसा क्यों -------
विचार शुरू करते है इश्वर से और इश्वर की बनायी सबसे महान कृति इन्सान से -----
इश्वर की इच्छा छोडिये , अगर इन्सान एक दुसरे को अच्छा बनाना चाहे तो कोई मुश्किल काम नहीं है .परन्तु प्रश्न ये उठता है की ,धरती से अगर बुराइयां समाप्त हो जाय तो शायद अच्छाई की परिभाषा किसी को मालूम ही नहीं होगी.अतः ,इन्सान एक दुसरे को सुधारता है तो इश्वर का अस्तित्व मिट जाएगा.यदि स्वयं इश्वर सुधारक बनता है ,तो उसके स्वयं के बनाए नियम नष्ट हो जायेंगे। जब की दोनों का अस्तित्व बने रहना ही प्रकृति का नियम है .अतः ---
मेरी नजर में उचित अनुचित सम्बन्ध में ये सांसारिक कलह सदैव जारी रहेंगे .
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