शक्ति जिसकी जरुरत श्रिस्टीके प्रारंभ से ही महसूस की गयी । लेकिन समय अपना अस्तित्व बदलता गया ,साथ ही साथ शक्ति की परिभाषा भी बदलती गई -----
ज़िन्दगी की शुरुआत में शक्ति का अर्थ शारीरिक क्षमता हुआ करती थी .उसके बाद शक्ति की परिभाषा उसकी उपलब्धि से जोड़ी गयी , की वह कितनी दूर तक अपना प्रभाव बनाये रख सकता है.इसी क्रम में समय लगातार अपना रुख बदलता गया और आज का दौर आया ------
आज की दुनिया में शक्ति की परिभाषा उसके कामयाबी और चतुर दिमाग से तुली जाती है जैसे ------
कितनी आसानी से किसी को बेवकूफ बनाया जा सके
कितनी आसानी से अपना काम बनाया जा सके
कितनी आसानी से किसी को बर्बाद किया जा सके
कितनी आसानी से किसी का प्यार पाया जा सके
कितनी आसानी से कोई रिश्ता तोडा जा सके
कितनी आसानी से किसी को लड़ाया जा सके
और कितनी आसानी से ख़ुद को बचाया जा सके
शक्ति की ये परिभाषाएं आज के दौर में इन्सान को कामयाब तो बना देती हैं लेकिन वो खुशी नही दे पाती जिसकी उसे तलाश है .सच्ची खुशी तो तभी मिलती है जब वह दूसरो पर ख़ुद को लुटाकर त्याग की शक्ति हासिल करता है ।
अतः मेरी नजर में त्याग ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है । इस शक्ति के भी कई दायरे है जिसकी चर्चा आगे करेंगे ।
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