डर सुनने में बड़ा अजीब शब्द है , लेकिन सच्चाई ये है की यही वह आधार जिसने इस धरती को स्वर्ग बनाया.डर बहुत विस्तृत शब्द है ,फिर भी इसकी कुछ झलक इस तरह है ---
इश्वर,इन्सान और श्रिस्टी के सन्दर्भ में -----
व्यक्ति वही है जिसके अन्दर डर है.डर ही जीवन का आधार है । अपना डर दूर कराने के लिए ही व्यक्ति कर्म करता है.डर की ये बात शारीरिक नहीं बल्कि कुछ और ही है ।
डर जैसे इश्वर के बताये रास्तों से भटक जाने का ,डर जैसे ख़ुद के उसूलों से मुकर जाने का,
इस ब्रह्माण्ड में अनेकों ऐसे डर है ,जो मनुष्य को निष्काम भावः से कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे खुशी की भावना को ही लीजिये -
दोस्ती भरे मीठे अहसासों के टूट जाने का डर ।
किसी के प्यार में नजरों से गिर जाने का डर ।
किसी कामयाबी में नाकाम हो जाने का डर ।
किसी भी समय ज़िन्दगी से दूर हो जाने का डर ।
किसी बात को लेकर रिश्ते टूट जाने का डर ।
व्यस्त जीवन में किसी के नाराज हो जाने का डर ।
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